संवैधानिक अधिकार और 5वीं अनुसूची sanvedhanik adhikaar or panchvi anusuchi

जय आदिवासी

5 वीं अनुसूचित क्षेत्र
आदिवासी विकास खंड - कुसमी
संभाग - सरगुजा
अविभाजित जिला - सरगुजा
वर्तमान जिला - बलरामपुर
राज्य - छत्तीसगढ़
भारत इण्डिया भारत

🌷 भाग-6🌷

अनुसूचित क्षेत्रों में चुनाव एवं राजनीतिक पार्टी -------------------------------

🌷अनुसूचित क्षेत्रों में चुनाव एवं राजनीतिक पार्टी दोनों ही "असंवैधानिक" हैं 🌷

पूना पैक्ट 1932 एवं चुनाव ------------------------

1) 🌷 1 9 1 1 ईस्वी की जनगणना में, आदिवासी समुदायों को पृथक धार्मिक मान्यता (Animist...जीववदी, प्रकृतिमूलक) देकर पूरे देश में आदिवासी समुदाय (Tribal,Aborigines,Indigenous peoples) को अंग्रेज सरकार ने दिया... जो मूलतः "भारत सरकार" के नाम पर राज कर रही थी...उस अंग्रेज सरकार ने "आदिवासी समुदायों" के पूर्वतः अधिकार बरकरार रखा ...इसी अधिकार बहाल करने की परिणति "गाँधी..इरवीन पैक्ट" के रूप में हुई...इसी समय काल में भारत में निवासरत समुदाय यथा ईसाई,सिख,एंगलो इंडियन,मुसलमान, हिन्दू,दलित ने भी "आदिवासी समुदायों" की तर्ज पर अधिकारों की माँग की...जिसके लिए इंग्लैंड में "गोलमेज सम्मेलन" हुए...इन्हीं गोलमेज सम्मेलनों में डॉ बाबा साहब अंबेडकर की माँग की वजह से "कम्युनल अवार्ड" जारी हुआ...यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि "आदिवासी समुदायों" के अधिकार पूर्वतः बहाल रखे गए  थे...इसलिए उन्हें इंग्लैंड जाने की जरूरत नहीं थी...साथ ही वे इसी भारतभूमि के वारिसदार होने की वजह से कहीं दूसरी जगह जाने की जरूरत  भी नहीं थी...तमाम immigrated Peoples(अक्रामनकारी लोग)  एवं अधिकार वंचित समुदाय, इंग्लैंड के गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए थे...आदिवासी समुदाय न तो "अधिकार वंचित था,,न ही 'प्रवासी भारतीय' Immigrated Indian था...इसलिए गोलमेज सम्मेलन में शामिल नहीं हुए....चूँकि दलित "हिन्दू धर्म" की जाति व्यवस्था(Cast System) का अंग होने की वजह से "गाँधी" ने उपवास किया...जिसका परिणाम "पूना पैक्ट" के रूप में समझौता "गाँधी...बाबा साहब" के बीच हुआ...इसी समझौते की वजह से "राजनीतिक आरक्षण" की बात स्वीकार की गई....जानकारी के अभाव में पूना पैक्ट "आदिवासी समुदाय" पर भी लागू कर दिया गया और हम आदिवासी समुदाय के पुरखे भी "पार्टियों" के दलाल बनकर "भारतीय राजनीति" में शामिल हो गए... हलाकि यह राजनीतिक मसला हमारे लिए नहीं था...हमारे लिए पृथक व्यवस्था एवं क्षेत्र थी जिस क्षेत्रों को  "वर्जित क्षेत्र एवं अंशिक रूप से वर्जित क्षेत्र " (excluded and partially excluded areas) कहते थे ...ऐसे "अधिसूचित इलाकों" (आदिवासी बहुल क्षेत्रों) में राजनीतिक पार्टी, राजनेता एवं चुनाव असंवैधानिक थे और हैं  ....🌷

2) 🌷 पूना पैक्ट 1932 में मोहन दास करमचन्द गांधी तथाकथित महात्मा गाँधी और बाबा साहेब आम्बेडकर के बीच चुनावी सम्बधी आरक्षण समझौता था । जो अनुसूचित जाति  (दलित ) आरक्षित सीटों पर अलग चुनावी ब्यावस्था(separate electoral system) सुनिश्चित करने सम्बधी , बाबा साहेब की असफल  प्रयास थी।🌷

3) 🌷 अगर बाबा साहेब 1932 के पूना पैक्ट में अपने दलितों के लिए, अनुसूचित जाति आरक्षित सीटों(SC reserved seats) पर separate electoral system लागू कराने में सफल हो गये होते, तो SC आरक्षित सीटों पर सभी वोटरस  (मतदाता ) केवल दलित होते । तथा सभी दलित आरक्षित सीटों पर गैर-दलितों के  प्रतिनिधित्व के मद्देनजर उनके लिए भी  अलग सीट होती जिसमें संयुक्त वोटिंग प्रणाली  (joint voting system)  होती । अतः बाबा साहेब दो तरह की वोटिंग प्रणाली के पक्षधर थे । 🌷

4) 🌷 लेकिन महात्मा गाँधी बहुत ही चालक एवं दूरदर्शी नेता होने के कारण, वे किसी भी किमत पर separate electoral system के पक्षधर नहीं थे क्योंकि वे जानते थे कि अगर ऐसा हो गया तो दलितों का सच्चा और असली प्रतिनिधित्व तो, उनको मिलेगा ही, लेकिन उन्हीं सीटों पर दूबारा संयुक्त वोटिंग प्रणाली में भी और एक अतिरिक्त दलित नेता के  निर्वाचित होने  की संभावना को  बल देती   है ।आथार्थ इस देश  में वही शासन करेगा जिनकी संख्या बल होगी और साथ में सही लोकतंत्र भी कायम हो जाएगी । अतः ब्राह्मणों की संख्या बल कम होने  के कारण उनकी सत्ता पर कब्जा कभी नहीं हो पाएगा ।🌷

5) 🌷 अतः महात्मा गाँधी ने बाबा साहेब के separate electoral system for schedule caste वाली प्रस्ताव को सिरे से नकारते हुए सभी सीटों पर  (सामान्य एवं आरक्षित सीटों दोनों पर) संयुक्त वोटिंग प्रणाली लागू कराने की माँग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गये एवं दबाव बनाने में कामयाब भी हो गये ताकि बाबा साहेब अपने प्रस्ताव को वापस ले। आखिरकार गांधी जीत गये एवं इस देश में separate electoral system के बजाय joint electoral system कायम कराने में कामयाब हो गये ।🌷

6) 🌷 यहाँ एक सवाल उठना लाज्जमी है कि 1932 में, देश आजाद नहीं होने के बावजूद पूना पैक्ट समझौता , चुनावी आरक्षण  प्रणाली पर,  गांधी एवं बाबा साहेब के बीच हस्ताक्षर होना आश्चर्य तो था ही, हैरान भी करने वाली थी। 🌷
7) 🌷 क्या गांधी और बाबा साहेब को यह पहले से ही पता था कि अंग्रेज भारत देश को छोड़कर जाने वाले थे  और किसके  हाथों में सत्ता का हस्तांतरण करके जाने वाले थे ? ?🌷

8) 🌷 क्या गांधी एवं बाबा साहेब को 1870 में  99 सालों के लिए लीज समझौता,  जो आदिवासी समुदायों एवं ब्रिटिश सरकार के बीच हुईं थी उनके बारे उन्हें पहले से मालूम था ?? क्या उनको ये भी मालूम था कि 99 सालों की लीज समझौता की अवधि  1969 को समाप्त होने वाली थी?  🌷

9) 🌷 जब बाबा साहेब को यह अच्छी तरह से मालूम था कि पूना पैक्ट समझौता 1932, आदिवासी समुदायों एवं क्षेत्रों पर लागू नहीं हैं फिर भी उन्होंने इन असंवैधानिक चुनावों को अनुसूचित क्षेत्रों में प्रभावी  होने से कभी रोकने की प्रयास ना कर,  स्वयं ही संदेह के धेरे में आ जाते हैं ।उन्होंने शायद जानबूझकर संविधान में अनुसूचित छेत्रो के लिए  चुनाव सम्बधी  संवैधानिक  प्रावधानों  को सरल शब्दों में नहीं रखा ताकि आदिवासी समुदायों के लोग हमेशा ही आम चुनावों को लेकर  दुविधा की स्थिति में रहे और स्वयं ही आदिवासी इन असंवैधानिक चुनावों में भाग लेकर, अपनी कब्र स्वयं  खोद सकें ।🌷

10) 🌷 आथार्थ गांधी एवं बाबा साहेब के गतिविधियाँ, गुजरात के सतिपति आदिवासी समुदायों के बातों को सार्थक साबित करने के लिए काफी है कि बाबा साहेब का संविधान, 1969 तक लीज समझौता के समाप्ति के साथ ही इसकी validity  (वैधता) भी समाप्त हो जाती थी क्योंकि लीज समझौता एवं संविधान की नवीनीकरण  (renewal) 1969 के बाद नहीं किया गया है ।🌷

11) 🌷अतःबाबा साहेब के संविधान 1950 में लागू होने के बाद से ही अनुसूचित क्षेत्रों में लगातार असंवैधानिक चुनावों को कराकर, मतदान के माध्यम से कुछ दलाल एवं नसमझ आदिवासीओ को  लालच एवं धोखे में रखकर आदिवासी छेत्रो में धुमने, निवास करने, जमीन हस्तांतरित करने, रोजगार व ब्यावसाय करने का परमिट  (license ) इन असंवैधानिक चुनावों के माध्यम से ही हासिल  करा दिया  गया है  ।🌷

12) 🌷 अतः पूना पैक्ट 1932 दो विदेशियों के बीच का करार  (समझौता) था फिर आदिवासी, जो इस देश के मूलबीज (इन्डीजिनस पीपुल्स) हैं  ( इस संदर्भ  में   सर्वोच्च न्यायालय का फैसला  2011में )  उनके ऊपर यह गुलामो वाली  असंवैधानिक  चुनावी प्रणाली(हिन्दू ब्यावस्था ) थोपकर, भोले भाले एवं ईमानदार आदिवासी समुदायों की नैसर्गिक संम्पति   (natural revenue ) को लूट रहे हैं ।तथा आदिवासी विकास के नाम पर उनको अपने ही जल जंगल जमीन और खान खनिज से बेदखल कर रहे हैं ।वे ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि आदिवासीओ के    असंवैधानिक जन प्रतिनिधि संसद में मौजूद हैं जो ब्राह्मणों की पार्टी के मुद्दों(agenda) पर काम करने को मजबूर है । ये आदिवासी जन प्रतिनिधि, आदिवासी मुद्दों को इसलिए भी नहीं रख पा रहे हैं क्योंकि ऐसा करने से गैर-आदिवासीओ का वोट बैंक खिसकने का डर है ।जब यह चुनावी प्रणाली ही हिन्दू कानून ब्यावस्था का अभिन्न अंग है तो आदिवासी इसमें कामयाब कभी नहीं हो सकता है क्योंकि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं ।🌷

13) 🌷 जिन आदिवासी बहुल क्षेत्रों में, जहाँ आदिवासी इन सामान्य  चुनावों का हिस्सा नहीं बन रहे  हैं वहाँ वहाँ सामान्य हिन्दू कानून प्रणाली आज तक भी थोपे नहीं जा सके हैं क्योंकि आदिवासी समुदायों ने  वहाँ पर वोट  (vote ) ना देकर, उनको ऐसा करने के लिए परमिट  (license or vetto power) नहीं दिए हैं । जैसे अंडमान निकोबार के 6 आदिवासी समुदायों को उदाहरण के रूप में दिया जाए सकता है  वहाँ वे स्वाशासन  ब्यावस्था  (self rules )के द्वारा ही  संचालित होते हैं । केन्द्रीय सरकार  उन पर हत्या जैसी संगीन मुकदमा भी, हिन्दू कानून  ब्यावस्था के अधीन नहीं चला सकती है क्योंकि उन्होंने, ऐसा करने के लिए वोटिंग का इस्तेमाल ही  नहीं किया   है। इसलिए  इन आदिवासी क्षेत्रों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री  तक को भी  वहाँ धूसने धूमने के लिए भी अनुमति लेनी पडती है वहाँ निवास व रोजगार ब्यावसाय तो  बहुत दूर की बात है ।🌷

🌷अथार्थ अनुसूचित क्षेत्रों एवं आदिवासी बहुल क्षेत्रों में चुनाव एवं राजनीतिक पार्टी दोनों ही असंवैधानिक हैं ।🌷

🌷 पूना पैक्ट के संदर्भ में आदिवासी, बामसेफ  (BAMCEF)  को इस बात के लिए धन्यवाद जरूर देना चाहेगी क्योंकि उन्होंने  यह प्रचार प्रसार किया है कि   पूना पैक्ट आदिवासी समुदायों के ऊपर लागू नहीं हैं। लेकिन अनुसूचित क्षेत्रों में पुनः "बहुजन मूक्ति पार्टी" को चुनाव में उतार कर बामसेफ ने अपने  कथनी एवं करनी में  स्वयं ही बिरोधाभाष पैदा कर दी है ।🌷
जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी


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